वर्ष 1985-86 में पूर्ववर्ती कल्याण मंत्रालय को महिला एवं बाल विकास विभाग तथा कल्याण विभाग में विभक्त किया गया था। इसी के साथ तत्कालीन कल्याण मंत्रालय बनाने के लिए अनुसूचित जाति विकास प्रभाग, जनजातीय विकास प्रभाग तथा पिछड़ा वर्ग कल्याण प्रभाग को गृह मंत्रालय से तथा वक्फ प्रभाग को कानून मंत्रालय से हटाया गया था।
तदुपरांत, मई 1998 में मंत्रालय का नाम बदलकर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय रख दिया गया था। इसके अलावा अक्टूबर, 1999 में जनजातीय विकास प्रभाग को एक पृथक जनजातीय कार्य मंत्रालय बनाने हेतु अलग कर दिया गया था। जनवरी, 2007 में वक्फ इकाई सहित अल्पसंख्यक प्रभाग को मंत्रालय से हटा दिया गया था तथा इसे एक पृथक मंत्रालय बना दिया गया था तथा बाल विकास प्रभाग महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में चला गया था।
यद्यपि नि:शक्तता विषय को संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में रखा गया है, भारत सरकार नि:शक्तता के क्षेत्र में हमेशा से सक्रिय रही है। यह न केवल विभिन्न प्रकार की नि:शक्तता से संबंध रखने वाले सात राष्ट्रीय संस्थानों (एनआई) एवं सात संयुक्त क्षेत्रीय केन्द्रों (सीआरसी) जो पीडब्ल्यूडी को पुनर्वास सेवाएँ प्रदान करते हैं तथा पुनर्वास पेशेवर के लिए पाठ्यक्रम चलाते हैं, का संचालन करती है अपितु साथ ही इसी प्रकार की सेवाएँ प्रदान करने के लिए गैर सरकारी संगठनों और राष्ट्रीय विकलांग वित्त तथा विकास निगम, जो स्व-रोजगार के लिए पीडब्ल्यूडी को रियायती दरों पर ऋण प्रदान करता है,को निधि उपलब्ध कराती है। इसके अतिरिक्त, केन्द्रसरकार निम्न संस्थाओं का एक पक्षकार है -
(i) एशिया तथा प्रशान्त महासागर क्षेत्र में विकलांग व्यक्तियों की संपूर्ण भागीदारी तथा समानता संबंधी उद्घोषणा जो दिसंबर, 1992 में बीजिंग में अपनाई गई, तथा
(ii) विकलांग व्यक्तियों के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (यूएनसीआरपीडी) जो मई, 2008 में प्रभाव में आया था।
इस विषय ने भिन्न- भिन्न अनुपात में विभिन्न राज्य सरकारों का ध्यान आकर्षित किया है। केन्द्र स्तर पर विकलांगता सामाजिक और अधिकारिता मंत्रालय के लिए कई दायित्वों में से एक है तथा केवल एक ब्यूरो द्वारा देखा जा रहा है परिणाम स्वरूप इस पर पर्याप्त ध्यान नही दिया गया है क्योंकि इसका अधिकतर समय और ऊर्जा मंत्रालय की स्वयं की योजनाओं को कार्यान्वित करने, उन पर होने वाले व्यय तथा भौतिक लक्ष्यों की प्राप्ति और पीडब्ल्यूडी के शशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जैसे वार्षिक समय बद्ध क्रिया-कलाप पर खर्च हो जाती है। उपर्युक्त पृष्ठभूमि में, 11वीं पंच वर्षीय योजना में यह बताया गया था कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का निशक्तता प्रभाग को एक पृथक विभाग में परिवर्तित करके सुदृढ़ बनाया जाएगा जिससे कि यह अन्य संबंधित मंत्रालयों/विभागों से प्रभाव पूर्ण ढंग से ताल-मेल कर सके तथा विकलांग व्यक्तियों के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन कर सके।"नि:शक्तता " विषय की विशिष्ट प्रकृति को देखते हुए यूएनसीआरपीटी की देख-रेख में व्यापक स्तर पर कार्य किया जाना है तथा वर्तमान कार्यान्वयन संरचना की अपर्याप्त क्षमता के कारण अब समय आ गया है कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में वर्तमान नि:शक्तता ब्यूरो का स्तरोन्नयन किया जाए। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में एक पृथक निशक्तता कार्य विभाग सृजित करने का निर्णय सरकार द्वारा सैद्धांतिक रूप से 3 जनवरी, 2012 को लिया गया था। इसकी घोषणा राष्ट्रपति महोदय द्वारा 12 मार्च, 2012 को संसद के दोनों सदनों के समक्ष भी की गई थी।
अब दिनांक 12.05.2012 की अधिसूचना के द्वारा सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत दो विभागों का सृजन किया गया है, नामत:
(i) सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग
(ii) नि:शक्तता कार्य विभाग।
जिसे विकलांगजन सशक्तिकरण विभाग के रूप में पुन: नामित किया गया है।