प्रभाग के बारे में

प्रभाग के बारे में
इस विभाग का समाज रक्षा प्रभाग मुख्यत: निम्नलिखित की अपेक्षाओं को पूरा करता है :-
  • वरिष्ठ नागरिक
  • मद्यपान और नशीली दवा दुरुपयोग पीड़ित
  • ट्रांसजेण्डर व्यक्ति
  • भिखारी/निराश्रित

1. वरिष्ठ नागरिक

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय वरिष्ठ नागरिकों से संबंधित मामलों के लिए नोडल मंत्रालय है। वर्ष-दर-वर्ष स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में सुधार के कारण जीवन प्रत्याशा में सतत वृद्धि होना वरिष्ठ नागरिकों की जनसंख्या में त्वरित वृद्धि के कारणों में से एक है। जनगणना 2011 के अनुसार, वरिष्ठ नागरिकों (60 वर्ष तथा इससे अधिक के आयु-वर्ग) की कुल जनसंख्या 10.38 करोड़ थी, जिसमें से पुरुषों और महिलाओं की जनसंख्या क्रमशः 5.11 करोड़ और 5.27 करोड़ थी । जनगणना, 2011 के अनुसार कुल जनसंख्या में वरिष्ठ नागरिक 8.57% हैं। राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग द्वारा गठित ''टेक्निकल ग्रुप ऑन पॉपुलेशन प्रोजेक्शन'' की मई, 2006 में भारत के महापंजीयक के कार्यालय द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इसके वर्ष 2021 में 10.70% तथा 2026 में 12.40% होने की आशा है।

यह मंत्रालय, राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों के सहयोग में वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण हेतु कार्यक्रम और नीतियां तैयार करता है तथा इनका कार्यान्वयन करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वरिष्ठ नागरिक सुरक्षित, गरिमामय और सक्रिय जीवन व्यतीय कर सकें। विशेषकर निराश्रित वरिष्ठ नागरिकों के लिए निम्नलिखित नीतियां, अधिनियम और कार्यक्रम, जिनका लक्ष्य वरिष्ठ नागरिकों का कल्याण और भरण-पोषण करना है, वृद्धावस्था प्रभाग द्वारा देखे जा रहे हैं :-

  1. राष्ट्रीय वृद्धजन नीति (एनपीओपी) - मौजूदा राष्ट्रीय वृद्धजन नीति की घोषणा जनवरी, 1999 में वृद्धजनों का कल्याण सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिए घोषित की गई थी। इस नीति में राज्यों द्वारा वृद्धजनों की वित्तीय और खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, आश्रय प्रदान करने और अन्य जरूरतों, विकास में समुचित भागीदारी, दुरुपयोग और शोषण से संरक्षण तथा उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सहायता प्रदान करना परिकल्पित है। जनसांख्यिकीय पैटर्न, वरिष्ठ नागरिकों की सामाजिक-आर्थिक जरूरतों, सामाजिक मूल्य प्रणाली में होने वाले परिवर्तनों तथा पिछले दशक से विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होने वाली उन्नति को देखते हुए एनपीओपी, 1999 को बदलने के लिए एक नई राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक नीति को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
  2. माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 (एमडब्ल्यूपीएससी अधिनियम) - माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण (एमडब्ल्यूपीएससी) अधिनियम, 2007 को दिसम्बर, 2007 में माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के जरूरत आधारित भरण-पोषण और उनके कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए अधिनियमित किया गया था।
  3. ''समेकित वृद्धजन कार्यक्रम'' (आईपीओपी) की केन्द्रीय क्षेत्र की योजना – इस योजना के तहत सरकार/गैर-सरकारी संगठनों/पंचायती राज संस्थाओं/स्थानीय निकायों आदि को आईपीओपी की योजना के तहत विभिन्न परियोजनाओं के संचालन और अनुरक्षण हेतु वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

2. मद्यपान और नशीली दवा दुरुपयोग पीड़ित

नशीली दवाओं और शराब का दुरुपयोग भारत में एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय नशीली दवाओं की मांग में कमी के लिए नोडल मंत्रालय है। यह नशीली दवा दुरुपयोग निवारण के सभी पहलुओं का समन्वय और निगरानी करता है जिसमें इस समस्या की सीमा का मूल्यांकन, निवारात्मक कार्रवाई, व्यसनियों का उपचार और पुनर्वास, सूचना का प्रचार-प्रसार और जन जागरूकता शामिल है। यह मंत्रालय, स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से व्यसनियों की पहचान, उपचार और पुनर्वास के लिए समुदाय-आधारित सेवाएं उपलब्ध कराता है।

(i) नशीली दवाओं के दुरुपयोग की सीमा, पैटर्न और प्रवृत्ति

वर्ष 2000-2001 में ड्रग और अपराध संबंधी संयुक्त राष्ट्र संघ कार्यालय (यूएनओडीसी) एवं सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा कराए गए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण (रिपोर्ट 2004 में प्रकाशित) में यह अनुमान लगाया गया था कि भारत में 732 लाख व्यक्ति शराब और नशीली दवाओं के उपयोगकर्त्ता थे । इनमें से क्रमश: 87 लाख व्यक्ति भांग, 20 लाख व्यक्ति अफीम और 625 लाख व्यक्ति शराब के उपयोगकर्त्ता थे । इन तीन प्रकार के उपयोगकर्त्ताओं में से क्रमशः 26%, 22% और 17% उपयोगकर्त्ता इन नशों पर निर्भर/आदी थे। सर्वेक्षण में यह भी संकेत दिया गया कि उदासी निवारक/निद्राजन्य, वाष्पशील पदार्थों, भ्रममूलक, उत्तेजना बढ़ाने वाले और दवा बनाने में काम आने वाले पदार्थों का भी दुरुपयोग किया गया है । इसमें यह भी बताया गया था कि अधिकांश उपयोगकर्त्ता 30 वर्ष से कुछ अधिक आयु के हैं और इनमें से अधिकतर ने कोई उपचार नहीं कराया है तथा बहुत कम व्यक्ति इस समय उपचार करा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, अफीम के अधिक प्रचलन वाले क्षेत्र मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और पश्चिम राजस्थान हैं। तथापि, देश की जनसंख्या के आकार की तुलना में प्रतिदर्श आकार (ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों दोनों में 12-60 वर्षों के आयु समूह के भीतर 40,697 पुरुष) छोटा है, इसलिए इस आकलन को अधिक-से-अधिक प्रतीकात्मक ही माना जा सकता है ।

(ii) इस मंत्रालय का दृष्टिकोण और कार्यनीति

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने नशीली दवा दुरुपयोग को मनो-सामाजिक चिकित्सा समस्या माना है जिसे गैर-सरकारी संगठनों/समुदाय आधारित संगठनों की सक्रिय भागीदारी के द्वारा परिवार/समुदाय आधारित दृष्टिकोण को अपना कर सर्वेत्तम तरीके से दूर किया जा सकता है । मांग में कमी की त्रिआयामी रणनीति इस प्रकार है :-

क) नशीली दवा दुरुपयोग के बुरे प्रभावों के बारे में लोगों को जागरुक और शिक्षित करना ।

ख) प्रोत्साहनात्मक परामर्श, पहचान, उपचार और नशीली दवा व्यसनियों के पुनर्वास हेतु समुदाय आधारित हस्तक्षेप ।

ग) प्रतिबद्ध और कुशल संवर्ग तैयार करने के लिए स्वयंसेवियों/सेवा प्रदाताओं को प्रशिक्षण प्रदान करना।

(iii) मद्यपान और नशीले पदार्थ (दवा) दुरुपयोग निवारण योजना

नशीली दवाओं की मांग में कमी करने के लिए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय वर्ष 1985-86 से मद्यपान तथा नशीले पदार्थ (दवा) दुरुपयोग निवारण योजना का कार्यान्वयन कर रहा है। इस योजना के अंतर्गत, व्यसनियों के लिए समेकित पुनर्वास केन्द्र (आईआरसीए) की स्थापना/संचालन के लिए स्वैच्छिक संगठनों और अन्य पात्र एजेंसियों को अनुमोदित व्यय के 90 प्रतिशत तक वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है । पूर्वोत्तर राज्यों, सिक्किम और जम्मू एवं कश्मीर के मामले में सहायता की प्रमात्रा कुल अनुमत व्यय के 95 प्रतिशत तक है। इस योजना को पहले 1994, 1999 और 2008 में संशोधित किया गया था तथा हाल ही में इसे 01.01.2015 को संशोधित किया गया है। इस योजना में गैर-सरकारी संगठनों और नियोक्ताओं को मुख्यत: निम्नलिखित मदों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है :-

  1. जागरुकता और निवारक शिक्षा
  2. नशीली दवा जागरुकता और परामर्श केन्द्र (सीसी)
  3. समेकित व्यसनी पुनर्वास केन्द्र (आईआरसीए)
  4. कार्य स्थल निवारण कार्यक्रम (डब्ल्यूपीपी)
  5. नशामुक्ति शिविर (एसीडीसी)
  6. नशीली दवा दुरुपयोग निवारण हेतु गैर सरकारी संगठन मंच
  7. समुदाय आधारित पुनर्वास को सुदृढ़ करने के लिए नवीन हस्तक्षेप
  8. तकनीकी विनिमय और जनशक्ति विकास कार्यक्रम
  9. योजना के अंतर्गत शामिल विषयों के बारे में सर्वेक्षण, अध्ययन, मूल्यांकन और अनुसंधान ।

3. ट्रांसजेंडरः

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय जुलाई, 2012 से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से संबंधित मामलों को देख रहा है। तथापि, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से संबंधित कार्य मई, 2016 माह में कार्य आवंटन नियमावली के अंतर्गत इस विभाग को आवंटित किया गया था। ट्रांसजेंडर समुदाय द्वारा उठायी जा रही समस्याओं का गहन अध्ययन करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित की गई थी। इस समिति ने 27 जनवरी, 2014 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए विभिन्न उपायों का सुझाव दिया गया है। विशेषज्ञ समिति द्वारा दी गई सिफारिशों पर अपने सुझाव/विचार रखने के लिए और उनके द्वारा की जाने वाली कार्रवाई की पुष्टि करने के लिए संबंधित केन्द्रीय मंत्रालयों और राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों के साथ परामर्श किया जा रहा है।

15 अप्रैल, 2014 को माननीय उच्चतम न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के मुद्दे से संबंधित राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा दायर की गई रिट याचिका सं. 400/2012 में यह निर्णय देते हुए केन्द्र और राज्यों सरकारों को ट्रांसजेंडर समुदाय के कल्याण के लिए विभिन्न कदम उठाने और उपर्युक्त निर्णय में की गई कानूनी घोषणा के आधार पर विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों की भी जांच करने का निदेश दिया था।

विशेषज्ञ समिति ने यह सिफारिश की है “सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए विभिन्न मंत्रालयों और राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों द्वारा किए जा रहे कल्याणकारी कार्यकलापों का समन्वय करने के लिए एक अन्तर-मंत्रालयीय समिति जिसमें संबंधित केन्द्र सरकार के मंत्रालयों के प्रतिनिधि और राज्य सरकारों के प्रतिनिधि शामिल होंगे, के रूप में एक स्थाई समन्वय तंत्र स्थापित करना चाहिए” तदनुसार एक अंतर-मंत्रालयीय समिति का गठन इन मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए किया गया है। आज की तारीख तक 4 अन्तर-मंत्रालयीय बैठकें आयोजित हुई हैं।

4. भिक्षावृत्ति

संविधान की किसी भी सूची में “भिखारी” अथवा “भिक्षावृत्ति” शब्द का कोई उल्लेख नहीं है। तथापि, संविधान की 7वीं अनुसूची में राज्य सूची की प्रविष्टि 9 के अनुसार “विकलांग और अनियोजनीय व्यक्तियों को राहत” राज्य का एक विषय है। समवर्ती सूची की प्रविष्टि 15 के अनुसार “आवारागर्दी” एक समवर्ती विषय है। वर्तमान में उपलब्ध सूचना के अनुसार, 20 राज्यों और 2 संघ राज्य क्षेत्रों ने या तो भिक्षावृत्ति निरोधक अपने विधान अधिनियमित किए हैं या अन्य राज्यों द्वारा अधिनियमित किए गए विधानों को अपनाया है। तथापि, इस तथ्य के बावजूद कि कई राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों ने भिक्षावृत्ति से संबंधित कानून अधिनियमित किए हैं, इन विधानों के उपबंध भिन्न-भिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न हैं और भिखारियों के पुनर्वास के लिए किए गए उपायों सहित उनके कार्यान्वयन की स्थिति भी एक समान नहीं है।

भिक्षावृत्ति की समस्या का समाधान करने के लिए मंत्रालय का दृष्टिकोण भिखारियों को दण्डित करने के बजाए उनका पुनर्वास करना है। तदनुसार, मंत्रालय निराश्रित व्यक्तियों संबंधी एक मॉडल विधान बनाने के संबंध में कार्रवाई कर रहा है जिसे सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा उपर्युक्त रूप से अनुसरण/अनुकरण किया जा सकता है और निराश्रित व्यक्तियों के संरक्षण, देखभाल और पुनर्वास संबंधी योजना को भी तैयार करने के लिए किया जा सकता है।